मीर / आलोक धन्वा

मीर पर बातें करो
तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
जितने मीर

और तुम्हारा वह कहना सब
दीवानगी की सादगी में
दिल-दिल करना
दुहराना दिल के बारे में
ज़ोर देकर कहना अपने दिल के बारे में कि
जनाब यह वही दिल है
जो मीर की गली से हो आया है।

आलोक धन्वा। १९४८ में जन्म। कविता पर नक्सलवाद का गहरा प्रभाव। बांग्ला, रूसी, और अंग्रेज़ी में कविताएं अनूदित। सम्प्रति बिहार के संगीत-नाटक अकादमी के अध्यक्ष।

(लेखक की स्वीकृति के साथ पुनर्मुद्रित)

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