सिलिएट / प्रियंक चौहान 

एक और एक
होते हैं दो
सच है
पर हमेशा नहीं
और न हीं सर्वत्र।
कभी-कभी
एक और एक
मिलते हैं
पर अपने प्रणय से
बन कर रह जाते हैं
दो की जगह
बस एक ही।
जन्म लेती है
एक एकात्मता
और उसका
छोटा सा जीवन।
एकता में भरी हैं
अथाह संभावनायें और
एक दरार
जो हिचकती है
कुछ देर
पर फिर उठती है और
बिजली की तरह चमककर
चीर देती है
विशालकाय एक को
दो में।
जग का कल्याण हुआ है
एक बार और।
व्हाइटहेड और रसेल का चेहरा
जगमगाया फिर से।
दुनिया भर के गणितज्ञों में
उल्लास की आँधी
एक बार और।

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